कीमत प्रभाव (Price Effect):
प्रावैगिक अर्थव्यवस्था में एक सम्भावना यह हो सकती है कि उपभोक्ता की आय एवं अन्य सम्बद्ध वस्तुओं की कीमत में कोई परिवर्तन न हो, केवल एक वस्तु की कीमत में ही परिवर्तन हो। यदि ऐसा होता है तो वस्तु की क्रय की जानेवाली मात्रा पर अवश्य ही प्रभाव पड़ेगा।
उदाहरणार्थ X और Y दो वस्तुएँ हैं जिनमें X-वस्तु की कीमत में परिवर्तन होता है लेकिन Y- वस्तु की कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होता। इस प्रकार X-वस्तु की कीमत पर जो प्रभाव पड़ता है, वही कीमत प्रभाव कहलाता है। कीमत_प्रभाव को भी एक रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है (देखिए रेखाचित्र)।

माना कि X तथा Y दो वस्तुएँ हैं जिनमें Y-वस्तु की कीमतें अपरिवर्तित रहती हैं। साथ ही उपभोक्ता की आय भी अपरिवर्तित रहती है। अब यदि X-वस्तु की कीमत में परिवर्तन होता है और वस्तु पहले की अपेक्षा सस्ती हो जाती है, तो इस दशा में AB के स्थान पर AB1 तथा AB2 नयी कीमत रेखाएँ, अस्तित्व में आयेंगी। माना कि इन कीमत रेखाओं पर IC, IC1 तथा IC2 क्रमशः तीन उदासीनता रेखाएँ हैं।
इन तीनों तटस्थ रेखाओं पर E, E,1 तथा E2 उपभोक्ता के सन्तुलन बिन्दु हैं। अब यदि इन तीन बिन्दुओं को परस्पर मिला दिया जाय तो एक रेखा प्राप्त होती है। यही कीमत उपभोग रेखा है। यह रेखा इस तथ्य को प्रकट करती है कि यदि अन्य बातें अपरिवर्तित रहें तो एक वस्तु की कीमत में होनेवाले परिवर्तन का उपभोग की जाने वाली मात्रा पर प्रभाव पड़ेगा।
कीमत प्रभाव के सम्बन्ध में एक उल्लेखनीय तथ्य यह है कि कीमत_प्रभाव (Price Effect) दो भिन्न क्रियाओं का संयुक्त परिणाम है-
(i) आय प्रभाव- जो आय उपभोग वक्र को गतिशील बना देता है और जिससे उपभोक्ता की आर्थिक स्थिति में सुधार हो जाता है।
(ii) प्रतिस्थापन प्रभाव- जो उदासीनता वक्र को गतिशील बना देता है और परिणामतः वस्तु की कीमत गिरने पर उपभोक्ता वस्तु की अधिक मात्रा क्रय करने की क्षमता प्राप्त कर लेता है।