Macro Economics

काल्डोर के समग्र आय वितरण सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या

प्रो० काल्डोर द्वारा विकसित वितरण के समष्टिपरक सिद्धांत की आलोचनात्मक व्याख्या या काल्डोर केे समग्र आय वितरण सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या (Kaldor’s Income Distribution Theory in Hindi):

प्रो० काल्डोर (Nicholas Kaldor) ने अपने समग्र आय वितरण के सिद्धान्त में कीन्सवादी उपकरणों का प्रयोग किया है, अतः इसे कीन्सवादी सिद्धान्त के नाम से भी जाना जाता है । प्रो० काल्डोर ने सम्पूर्ण राष्ट्रीय आय को अर्जित करने वाले लोगों को दो भागों में बाँटा है-श्रमिक वर्ग व सम्पत्ति स्वामी वर्ग। श्रमिक वर्ग द्वारा अर्जित आय मजदूरी और पूँजीपति वर्ग द्वारा अर्जित आय लाभ कहलाता है। लाभ में सामान्य लाभ, लगान व ब्याज शामिल होता है।

काल्डोर केे समग्र आय वितरण सिद्धान्त सिद्धान्त की मान्यताएँ:

  1. अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार की स्थिति रहती है ।
  2. सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति व बचत प्रवृत्ति स्थिर रहती है।
  3. सम्पत्ति स्वामी की तुलना में श्रमिक वर्ग की बचत प्रवृत्ति कम होती है।
  4. कुल आय को मोटे तौर पर दो भागों में बॉटा जा सकता है-कुल मजदूरी (W) और कुल लाभ (P)।
  5. (SW = SP)

काल्डोर केे समग्र आय वितरण सिद्धान्त का बीजगणितीय विवेचन:

  • माना Y= कुल राष्ट्रीय आय, W= सम्पूर्ण मजदूरी आय तथा P=सम्पूर्ण लाभ आय तो Y = W+P …….समी०(i)
  • चूंकि अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार की स्थिति है,अतः बचत विनियोग के बराबर होगी अर्थात् I = S ………समी(ii)
  • यदि मजदूरी आय में से की गयी बचत (Sw) हो और लाभ आय में से की गयी बचत (Sp) हो तो  S= Sw+Sp ……..समी०(iii)

विनियोग को दिया हुआ मानकर यदि हम मजदूरों बचत करने की औसत प्रवृत्ति कै लिए(Sw) का लाभ अर्जित करने वालों की बचत की औसत प्रवृत्ति के लिए sp का प्रयोग करें तब Sw= Sw × W                                                      Sp= Sp × p

  • समी० (ii) तथा (iii) से निम्न समीकरण प्राप्त होता है- I = sp × p + sw × W
  • समीकरण (i) से हमें मालूम है कि W =Y-P
  • I = sp × P × sw(Y- P)
  • I= sp × P – sw × Y-sw × p
  • I= (sp sw) P + sw × Y
  • दोनों भागों को (Y) से भाग देने पर
  • 1/Y (sp – sw) P/Y + w…….

अब यदि हम दोनों पक्षों को (sp-sw) से भाग देकर उपर्युक्त समीकरण को पुन: व्यवस्थित करें तो P/Y= 1/sp-sw × sw/sp-sw

चूँकि P लाभ व Y राष्ट्रीय आय का प्रतीक है, इसलिए हम कह सकते हैं-

चूँकि इस समीकरण में (sp) का मूल्य निश्चित है, इसलिए लाभों से राष्ट्रीय आय का अनुपात (P/Y) विनियोग के राष्ट्रीय आय के अनुपात (1/Y) पर निर्भर होता है। अत: जैस-जैसे या विनियोग की दर में वृद्धि होती जाएगा, आय में लाभ का अंश बढ़ता जाएगा और मजदूरी का अंश घटता जाएगा।

काल्डोर केे समग्र आय वितरण सिद्धान्त की आलोचना:

  1. पूर्ण रोजगार की मान्यता के कारण पूर्ति पक्ष और उत्पादन निर्णयों को इस सिद्धान्त में छोड़ दिया गया है, अत: यह सिद्धान्त एकपक्षीय है।
  2. यह सिद्धान्त अवास्तविक मान्यताओं पर आधारित है। अत: इसमें निकाले गये निष्कर्ष भी अनुचित और अव्यावहारिक हैं।
  3. काल्डोर के सिद्धान्त को एक और कीन्सियन मॉडल मानना और दूसरी ओर सदैव पूर्ण रोजगार की स्थिति को लेकर व्याख्या करना तर्कसंगत नहीं है।
  4. प्रो० काल्डोर की यह व्याख्या सदैव सत्य नहीं है कि कीमतों के स्तर में सभी कमियों के साथ साथ लाभ अन्तरों (p/y) में कमियाँ हों, क्योंकि तकनीकी प्रगति कीमतों में कमी की अपेक्षा इकाई लागा को अधिक कम कर सकती है।
  5. प्रो० काल्डोर ने विनियोग को बचत अनुपात तथा बचत करने की प्रवृत्ति से स्वतंत्र माना है परन्तु वास्तविक जगत में इस प्रकार की स्थिति नहीं पायी जाती।
  6. प्रो० काल्डोर ने विनियोग उत्पाद अनुपात को दिया हुआ मानकर समीकरण का उपयोग अत्यंत ही यांत्रिक रूप से किया गया है।
  7. प्रो० काल्डोर ने मानव पूँजी की उपेक्षा की है।

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नीतिश कुमार मिश्र
नीतिश कुमार मिश्र (Neetish Kumar Mishra) इस वेबसाइट के फाउंडर हैं। वे इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से स्नातक एवं महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ से परास्नातक (अर्थशास्त्र) कर चुके हैं। अब वे इस वेबसाइट के माध्यम छात्रों को बेहतर कंटेंट देकर उनको आगे बढ़ाने की ओर प्रयासरत हैं।

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