Current Affairs in Hindi

RBI ने चालू वित्त वर्ष (2019-20) की 5वीं मौद्रिक नीति का किया ऐलान, रेपो रेट में नहीं हुई कटौती

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने अपनी मौद्रिक समीक्षा नीति जारी की है। इस दौरान केंद्रीय बैंक की ओर से रेट कट में कटौती का उम्मीद थी लेकिन उम्मीदों को झटका देते हुए भारतीय रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में कटौती नहीं की है।

आरबीआई की मौद्रिक नीति की समीक्षा बैठक में यह फैसला लिया गया है। आरबीआई के इस फैसले के बाद रेपो रेट 5.15 फीसदी पर बरकरार है। वहीं रिवर्स रेपो रेट और बैंक रेट को भी बिना बदलाव क्रमश: 4.90 फीसदी और 5.40 फीसदी रखने का फैसला किया है।

आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति ने वित्त वर्ष 2019 20 के लिए जीडीपी ग्रोथ को घटाकर 5 फीसदी कर दिया है। इससे पहले अक्टूबर में हुई एमपीसी की बैठक में 6.1 फीसदी जीडीपी ग्रोथ रहने का अनुमान जताया था।

अगले वित्त वर्ष की पहली छमाही में जीडीपी ग्रोथ 5.9 से 6.3 फीसदी रहने का अनुमान जताया गया है। ध्यातव्य है कि अक्टूबर माह में रीटेल महंगाई दर आरबीआई के 4 फीसदी के लक्ष्य से ऊपर 4.62 फीसदी दर्ज की गई। दूसरी तिमाही के लिए जीडीपी विकास दर 4.5 फीसदी दर्ज की गई जो 6 साल का सबसे कम स्तर है।

● मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee):

मौद्रिक नीति समिति  भारत सरकार द्वारा गठित एक समिति है जिसका गठन वाणिज्यिक बैंकों के लिए ब्याज दर निर्धारण, अर्थव्यवस्था में समावेशी विकास तथा सरकार द्वारा निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु 27 जून, 2016 को किया गया था।

भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम- 1934 में संशोधन करते हुए भारत में नीति निर्माण का कार्य नवगठित मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) को सौंप दिया गया है। नयी एमपीसी में छह सदस्यों का एक पैनल है जिसमें तीन सदस्य आरबीआई से होंगे और तीन अन्य स्वतंत्र सदस्य भारत सरकार द्वारा चुने जायेंगे।

आरबीआई के तीन अधिकारियों में एक गवर्नर, एक डिप्टी गवर्नर तथा एक अन्य अधिकारी शामिल होगा। मौद्रिक नीति सर्वसम्मति से निर्णय लेती है। यदि बराबर मत है तो गवर्नर को निर्णायक मत देने का अधिकार होगा।

● मौद्रिक नीति के कुछ मात्रात्मक उपकरण:

रेपो रेट (Repo Rate) – इस रेट पर आरबीआई कमर्शियल बैंकों और दूसरे बैंकों को अल्पकालीन ऋण देता है। रेपो रेट कम होने का मतलब यह है कि बैंक से मिलने वाले लोन सस्ते हो जाएंगे।

क्योंकि जब बैंकों को RBI से सस्ता ऋण मिलेगा तो बैंक भी लोगों को प्रदान किये जाने वाले ऋण में कमी करेगा। रेपो रेट कम होने से होम लोन, व्हीकल लोन वगैरह सभी सस्ते हो जाते हैं।

रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo Rate)- जिस रेट पर बैंकों को उनकी ओर से आरबीआई में जमा धन पर ब्याज मिलता है, उसे रिवर्स रेपो रेट कहते हैं। यह सामान्यत: रेपो रेट से 50 बेसिक पॉइंट कम होती है।

रिवर्स रेपो रेट बाजारों में नदी को नियंत्रित करने में काम आती है। बहुत ज्यादा नकदी होने पर आरबीआई रिवर्स रेपो रेट बढ़ा देती है।

कैश रिजर्व रेशियो (Cash Reserve Ratio: CRR) – बैंकिंग नियमों के तहत सभी बैंकों को अपनी कुल नकदी का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास जमा करना होता है, जिसे कैश रिजर्व रेशियो यानी सीआरआर कहते हैं।

मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी (Marginal Standing Facility: MSF) – भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी मौद्रिक नीति (2011-12) में सीमांत स्थायी सुविधा शुरू की थी। MSF यानि मार्जिनल स्टैंडिंग फेसिलिटी के तहत कमर्शियल बैंक एक रात के लिए अपने कुल जमा का 1 फीसदी तक लोन ले सकते हैं।

वैधानिक तरलता अनुपात (statutory Liquidity Ratio: SLR)- वैधानिक तरलता अनुपात बैंकों के पास उपलब्ध जमाओं का वह हिस्सा होता है, जो कि उन्हें अपनी जमाओं पर लोन जारी करने के पहले अपने पास रख लेना अनिवार्य होता है।

यह नकदी (cash), स्वर्ण भंडार (gold reserves), सरकारी प्रतिभूतियों (government approved securities) वगैरह किसी भी रूप में हो सकता है।

द इकोनॉमिस्ट हिन्दी
द इकोनॉमिस्ट हिन्दी (The Economist Hindi) इस वेबसाइट के आधिकारिक एडमिन हैं।
https://www.theeconomisthindi.in

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *