OPEC क्या है? (What is OPEC in Hindi?) OPEC का Full Form
OPEC क्या है? (What is OPEC in Hindi?) OPEC निर्यातक देशों का एक संगठन है। OPEC का Full Form Organisation of Patroleum Exporting Countries है।
OPEC की स्थापना कब हुई थी?
OPEC की स्थापना 1960 में हुई थी। इसे ईराक़ के बगदाद में 5 देशों (ईराक़, ईरान, वेनेजुएला, कुवैत, सऊदी अरब) द्वारा स्थापित किया गया था। 1961 से OPEC संगठन प्रभाव में आया था।
वर्तमान में OPEC में कितने सदस्य देश हैं?
1960 में स्थापना के समय OPEC के 5 सदस्य देश थे- Iran, Iraq, Kuwait, Saudi Arabia और Venezuela. लेकिन वर्तमान में OPEC में 13 सदस्य देश हैं- अल्जीरिया, अंगोला, कांगो, एक्वाटोरियल गिनी, गैबोन, ईरान, ईराक़, कुवैत, लीबिया, नाइजीरिया, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, वेनेजुएला।
OPEC से बाहर हुए देश:
इंडोनेशिया, कतर और एक्वाडोर OPEC से बाहर हुए देश हैं। 30 नवम्बर 2016 को इंडोनेशिया, 1 जनवरी 2019 को कतर और 1 जनवरी 2020 को एक्वाडोर OPEC से बाहर हो गए थे। क़तर ने नेचुरल गैस प्रोडक्शन के लिए सदस्यता छोड़ी थी, जो आज दुनिया का सबसे बड़ा LNG निर्यातक देश है।
OPEC का मुख्यालय कहाँ है?, OPEC की आधिकारिक भाषा क्या है? और OPEC के महासचिव कौन हैं?
स्थापना के समय OPEC का मुख्यालय जेनेवा, स्विट्जरलैंड में था, लेकिन OPEC का मुख्यालय वियना, ऑस्ट्रिया में है। OPEC की आधिकारिक भाषा (Official Language) अंग्रेजी (English) है। आपको बता दें कि वर्तमान समय में OPEC के महासचिव (General Secretary) मोहम्मद बार्किंडो (Mohammed Barkindo) हैं।
1960 में OPEC देशों का उद्देश्य क्या था?
- सदस्य देशों की तेल नीतियों में समन्वय स्थापित करना।
- कीमतों में स्थिरता बनाए रखना जिससे आर्थिक उतार-चढ़ावों से बचा जा सके।
1973 में इनकी सदस्य संख्या 13 हो गई जो विश्व के 70% से 80% कच्चे तेल पर नियंत्रण करते थे, तथा 87% का निर्यात करते थे। तेल की मांग बेलोचदार होती है। इसे तो देशों को खरीदना ही पड़ता है। OPEC लगभग एकाधिकारी है। गैर OPEC देश तेल की पूर्ति को बढ़ा नहीं पाये हैं।
इस संगठन के कारण तेल की कीमत में लगभग 400% की वृद्धि हो गई है। इस प्रकार के संगठन, लाभ प्राप्त करने के लिये कई शक्तियों द्वारा बनाये गये थे जैसे यूरोप के किसान, ब्राजी के कौफी बनाने वाले कई शहरों के टैक्सी ड्राइवर इत्यादि। यह सब संगठन पूर्ण प्रतियोगिता की तरफ कीमत ग्रहण करने वाले ही नहीं थे बल्कि कीमत और उत्पादन को प्रभावित करने वाले बन गये थे।
इस प्रकार के संगठन मुख्य रूप में यह देखते हैं कि उत्पादन को नियंत्रित किया जाये। सदस्यों द्वारा अगर संगठन का कोई सदस्य नियमों को न मान कर अपने ही निर्णय चलाना चाहे तो उसे लाभ होगा पर अगर सभी सदस्य अपनी चलाना चाहे तो सभी को नुकसान होगा।
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इस बात को चित्र के द्वारा इस प्रकार के दिखाया जा सकता है यहाँ Sw विश्वपूर्ति वक्र है और OPw पर OPEC देश विश्व की तेल की मांग को पूरा कर सकते हैं SN गैर OPEC देशों का पूर्ति वक्र है। यहाँ मांग वक्र को दिखाता है। संसार में Pw कीमत पर OQ0 तेल का उत्पादन होगा जिसमें से oq1 गैर OPEC देशों द्वारा तथा q1q0/OPEC देशों द्वारा बनाया जाता है। OPEC देशों ने अपने आप पूर्ति वक्र को प्रभावित करने के लिये नया पूर्ति वक्र S1w कर दिया जिसके कारण तेल की कीमतें बढ़कर P1w हो गयी जिससे गैर OPEC देशों का उत्पादन बढ़कर OQ2 हो गया तथा OPEC का उत्पादन q2q3 हो गया।

OPEC की कुल आय बढ़ गयी क्योंकि उत्पादन के कम होने पर भी कीमतें काफी बढ़ गई थीं, पर गैर OPEC के लाभ काफी बढ़ गये थे। धीरे-धीरे OPEC देशों का महत्त्व कम होने लगा है तथा गैर OPEC देशों का महत्त्व बढ़ने लगा है। 1980 से OPEC पर दबाव बढ़ने लगा जिससे उनकी शक्ति को नियंत्रित किया जाने लगा।
OPEC पर दबाव के कारण:
- विश्व आपूर्ति में वृद्धि: तेल व्यापार में बढ़ती कीमतों के कारण गैर OPEC देशों में तेल का उत्पादन बढ़ने लगा। इससे बढ़ती कीमतों को रोकने के लिये OPEC को तेल उत्पादन को नियंत्रित करना पड़ा।
- समय के साथ-साथ तेल की मांग लोचपूर्ण होने लगी।
- महंगे तेल से बचने के लिये शक्ति के नये स्रोत खोजे जाने लगे।
- OPEC देशों के लाभ कम होने के कारण सब सदस्यों ने नियमों को तोड़ना चालू किया जिससे सबका नुकसान होने लगा।
इन सब बातों के कारण OPEC की सार्थकता का अवलोकन:
- अगर वस्तु की मांग लोचहीन है तो उत्पादन की मात्रा को कम रखना चाहिये।
- समय बीतने पर बाजार शक्ति को बनाये रखना कठिन होता है।
- अल्पकाल व दीर्घकाल के लाभों में चुनाव करना पड़ता है।
- दीर्घकाल में देशों के द्वारा उत्पादन पर नियंत्रण बनाये रखना कठिन होता है।
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