बेरोजगारी बढ़ने के साथ महंगाई बढ़ने की स्थिति को मुद्रास्फीतिजनित मंदी या स्टैगफ्लेशन (Stagflation) कहते हैं। यह शब्द 1970-80 के दौरान अमेरिका में ऐसी ही स्थिति के दौरान अर्थशास्त्र का नोबेल जीतने वाले पहले अमेरिकी अर्थशास्त्री पॉल सैम्युुुएलसन ने ईजाद किया था।
1973 में अमेरिका में मुद्रास्फीति दर दोगुना बढ़कर 8.7% पहुंच गई और 1980 तक यह 14% पर थी। इस दौरान बेरोजगारी भी चरम स्तर तक पहुंच गई। शिकागो के अर्थशास्त्री और नोबेल विजेता मिल्टन फ्रीडमैन ने भी इससे अर्थव्यवस्था को पहुंचे नुकसान को लेकर आगाह किया था।
वर्तमान में भारत में भी है मुद्रास्फीतिजनित मंदी:
भारतीय अर्थव्यवस्था को बेरोजगारी के साथ महंगाई बढ़ने का दोहरा खतरा झेलना पड़ सकता है। प्रख्यात अर्थशास्त्री और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी इसकी चेतावनी जारी की है। आमतौर पर महंगाई और बेरोजगारी में उल्टी दिशा में चलते हैं। महंगाई बढ़ती है तो बेरोजगारी घटती है। दरअसल, बेरोजगारी घटना यानी ज्यादा लोगों को रोजगार का सीधा मतलब कंपनियों की आय में बढ़ोतरी और लोगों के पास ज्यादा पैसा आने से मांग बढ़ना होता है।
स्टैगफ्लेशन के कारण:
कच्चे माल और उत्पादों की आपूर्ति में कमी, तेल के दामों में उछाल और मौद्रिक नीति में ज्यादा तरलता से यह स्थिति आई। इस कारण महंगाई तेजी से बढ़ती चली गई और कंपनियां मांग में कमी से उत्पादन और रोजगार भी ज्यादा नहीं बढ़ा पाईं।
पूर्व प्रधानमंत्री एवं अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह ने भी किया आगाह:
मनमोहन सिंह ने कहा कि लोगों की आय नहीं बढ़ रही है और परिवारों की खपत धीमी होती जा रही है। लोग बचत पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं और फिर भी खाद्य महंगाई में तेजी दिखाई दे रहे हैं। बेरोजगारी के संकट के बीच ये खतरे के संकेत हैं और पिछले कुछ महीनों से महंगाई में बढ़ोतरी की प्रवृत्ति है।